आज़ाद गज़ल
मुझ से हमदर्दी की हिमाकत न कर
मुझसे ही मेरी यार शिकायत न कर ।
मत जाया कर अपनी ये रहमदिली
रंज कर मगर कोई रिफाक़त न कर ।
लूटा चुका हूँ मैं हर एक पल गमों के
अब तू अश्क़ों की हिफाज़त न कर ।
खाक़सार हूँ खाक़ में मिल जाऊँगा
ज़िंदगी,मौत से कोई बगावत न कर ।
हौंसला अफजाई की ज़रूरत नहीं है
खामखाँ मुझ से तू अदावत न कर ।
मिल जाए शायद क़रार तुझको भी
अजय साँसों पे कोई रियायत न कर।
-अजय प्रसाद