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18 Jan 2022 · 1 min read

आज़ाद गज़ल

कातर नजरों को हमने कातिल बना दिया
मझधार को ही मैनें साहिल समझ लिया ।
यूँ डूबे हम भंवरों में ,की लहरें लरज ऊट्ठी
खुद को जानबूझ कर जाहिल बना दिया ।
नाखुदा की नाराज़गी का तो हूँ मैं कायल
किश्ती को खाली कर किनारे लगा दिया।
चलो अच्छा है किसी काम तो आया मैं
उनकी तोहमतों का निशाना बना दिया ।
आखिर अजय तुम भी बेवफा ही निकले
बुजदिली को गज़लों जामा पहना दिया।
-अजय प्रसाद

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