आज़ाद गज़ल
कातर नजरों को हमने कातिल बना दिया
मझधार को ही मैनें साहिल समझ लिया ।
यूँ डूबे हम भंवरों में ,की लहरें लरज ऊट्ठी
खुद को जानबूझ कर जाहिल बना दिया ।
नाखुदा की नाराज़गी का तो हूँ मैं कायल
किश्ती को खाली कर किनारे लगा दिया।
चलो अच्छा है किसी काम तो आया मैं
उनकी तोहमतों का निशाना बना दिया ।
आखिर अजय तुम भी बेवफा ही निकले
बुजदिली को गज़लों जामा पहना दिया।
-अजय प्रसाद