आज़ाद गज़ल
चुरा कर औरों की लाईनें शायर बनें हैं
शायरों के अगले सफ़े में बेशर्म खड़ें हैं।
ज़रा देखिए इनके जज़्बा ओ हिमाक़त
मंचों पर माईक लेकर बेखौफ़ तनें हैं।
गज़लें कहतें इस अंदाज़ से यारों कि
जैसे वो आएं चबा कर लोहे के चनें हैं ।
सियासत में सितमगर से शिकवा क्यों
अखिर जनता ने जनता के लिए चुनें हैं ।
अबे तू खामोश नहीं रह सकता,अजय
सबको अपने हिसाब से यहाँ जीनें हैं।
-अजय प्रसाद