आज़ाद गज़ल
ज़िंदगी भी कितनी बेशरम है
हमारे ही उम्मीदों पे क़ायम है।
सोंचिये कैसा है ये उम्रे सफ़र
मौत की तरफ़ बढ़ते कदम है ।
हवाओं ने संभाल रक्खा है हमें
हम सोंचतें साँसों का करम है ।
अपनी नजरों में है सब सिकंदर
दोस्तों यही तो हमारा भरम है ।
कोई किसी को कुछ नहीं देता
बस अल्लाह का सब पे करम है।
-अजय प्रसाद