आज़ाद गज़ल
अरे!ये मुहँ और मसूर की दाल
गरीब है,महंगे शौक,मत पाल ।
मत पका यहाँ खयाली पुलाओ
जो है मिला उस को तो संभाल।
ख्वाब देख मगर,औकात में रह
खाली पीली खुद को न खंगाल ।
है खाली जेब खुद्दारि ! जैसे कि
गीदड़ ने पहना हो शेर की खाल।
मुसीबत मौके का फायदा उठाती है
अजय कुछ तो रख वक्त का ख्याल।
-अजय प्रसाद