आज़ाद गज़ल
जंग लगी हुई ज़मीर का क्या करूँ
दोस्तों हूँ गरीब,अमीर का क्या करूँ ।
जो हक़ में किसी के दुआ ही न करें
उस मतलबी फ़कीर का क्या करूँ ।
तुम्हारे कहने पे आ गया महफिल में
बता इस बेजान शरीर का क्या करूँ।
दहशत में हैं मुझें देख कर ही दर्शक
ऐसे माहौल में तकरीर का क्या करूँ।
गुजर गया है जमाना अजय से मिले
उसकी पुरानी तस्वीर का क्या करूँ ।
-अजय प्रसाद