आज़ाद गज़ल
जमाना है अक़्सर उन्हें भूल जाता
जो राहों में सब के है कांटे बिछाता ।
भलाई भी तो हद से ज्यादा बुरी है
जहाँ झोंक आँखों में है धूल जाता ।
दग़ा दोस्त ही जब करें दोस्ती में
है जीगर में चुभ तब कोई शूल जाता ।
न हो बाग पे गर नज़र बागवाँ की
उदासी में मुरझा है हर फूल जाता ।
अजय अब तू भी भूल जा ये शराफ़त
भले को है समझा यहाँ शूल जाता ।
-अजय प्रसाद