आज़ादी
मैंने मुझमे से कुछ तुमको
बिना दाम दे रक्खा था।
अपने इकतरफा रिश्ते को
प्यार नाम दे रक्खा था।
चाहा था तुम इस बंधन में
आजादी महसूस करो।
तुम चाहो तो प्यार करो
तुम ना चाहो तो ठूस करो।
चाहा पकड़ूँ हाँथ तुम्हारा
खुशियों के संदर्भ लिखाऊँ।
कैद नज़र में करके तुमको
आज़ादी के अर्थ बताऊँ।
ऐसी जन्नत तुम्हें दिखाऊँ
जहाँ न बंधन मस्ती पर।
रोकटोक है जहाँ न बिल्कुल
दीवानों की हस्ती पर।
आज़ादी की उस धरती पर
चिंताओं का भार नहीं है।
गम के बदले ख़ुशियाँ मिलतीं
प्यार वहाँ व्यापार नहीं है।
मैंने तुम्हें बुलाया था पर
पास न मेरे आयीं तुम।
सच्ची आज़ादी का मतलब
शायद समझ न पायीं तुम।
यही बजह थी शायद तुमको
भाया साथ नहीं मेरा।
यही बजह थी शायद तुमने
थामा हाँथ नहीं मेरा।
संजय नारायण