आह्वान
वैश्विक स्तर पर फैली एक बीमारी,
केवल बीमारी नही एक महामारी,
चल रही जंग अभी इस के ख़िलाफ़,
जल्द ही जीतेंगे और मुस्कुराएँगे हम,
पर सोचा है कभी क्या हम सबने?
हर चोट है सीखती इक नया ज्ञान,
इससे बचने के बाद,
आत्मविश्लेषण पर हो थोड़ा हमारा ध्यान,
क्या कर नही रहे थे प्रकृति का शोषण हम?
जिससे क्रुद्ध हुई क़ुदरत और पाया यह अभिशाप,
जिस गंगा को साफ़ करने में ख़र्च हुए,
करोड़ों रूपए और साल,
वो दो महीनों में ही हो गयी,निर्मल पाक़ताल,
प्रकृति ने भी उज्ज्वल रंग दिखाए,
एक साथ दो-दो इंद्रधनुष आसमान में नज़र आए,
क्या यह सब नही चाहिए हमको!
हमेशा के लिए साफ़,स्वच्छ, निर्मल,
तो करें मनन और आह्वान करें,
प्रदूषण कम करने का, वायु को स्वच्छ करने का,
आत्मनिर्भर बनने का,
शुद्धता को अपनाने का,
इक नया पेड़ रोज़ लगाने का,
जीव-जन्तुओं के संरक्षण और जंगलों को बचाने का,
अपना कार्य स्वयं कर, आत्मनिर्भर बन जाने का,
एक स्वच्छ और आत्मनिर्भर समाज बनाने का,
करें सब मिल के आह्वान परिवर्तन लाने का…….