“आहिस्ता आहिस्ता”
वो आ रही है, मुझमें बनके महक आहिस्ता आहिस्ता
घटने लगी है, मेरे दिल की कसक आहिस्ता आहिस्ता
मेरी ग़ज़ल को लहज़ा मिला है ,उसके यूँ आ जाने से
जैसे मिल रहा हो धरती से फ़लक आहिस्ता आहिस्ता
ये इश्क़ है के रफ़ाक़त ,अब इसकी फ़िकर किसको है
बढ़ती है बढ़ती रहे,आँखों में चमक आहिस्ता आहिस्ता
मेरे दिल की जमीं भीग गयी ना जानें कब से सूखी थी
दिल के आसमाँ में होने लगी धनक आहिस्ता आहिस्ता
बड़ा ग़मज़दा अफ़साना था बड़ा ग़मज़दा तराना था
वो फानूस बनके आई होने लगी रौनक आहिस्ता आहिस्ता
ज़रूर मेरी दुआं क़ुबूल हुई है ,जो मैंने अब तलक की
मेरा आशिया विराना ,होने लगा कनक आहिस्ता आहिस्ता
—-अजय “अग्यार