आस..
बादलों की उमस से
आदमी बेचैन होता है।
न दिन में काम कर पाता
न सुख से ,रात सोता है ।।
कभी बादल हवाओं को
क्रोध से कोस लेता है ।
अपने मन से विकल होकर
खुद ही सुख चैन खोता है ।।
घनश्याम की ले आस
चातक बोलता है ।
भरी गर्मी में डाली पर
बेबस डोलता है ।।
मेघ बरसेंगे मन में बस
यही विश्वास लेकर ।
मुदित उत्साह से उड़ने को
निज पर खोलता है ।।
-सतीश शर्मा, नरसिंहपुर(म.प्र.)