आस नहीं मिलने की फिर भी,………… ।
नींद नहीं नैनों में फिर भी ख्वाब तुम्हारे आते हैं,
आस नहीं मिलने की फिर भी क्यों अरमान जगाते हैं।
मैंने तुमसे प्रेम किया पर तुमने मुझको चाहा है,
कहां गलत हो गए हम इसमें जो इतना तड़पाते हैं॥
माना मेरी नासमझी ने तुमको बहुत रुलाया है,
पर तुमने भी हमसे अपने दिल का राज़ छुपाया है।
कहते गर जो हाल-ए-दिल तो फिर मंज़र कुछ जुदा ही होता,
या तो होते साथ में हम या न तुम रोते न मैं रोता॥
गुज़रा वक्त न फिर आएगा क्यों बचपना दिखाते हैं,
आस नहीं मिलने की फिर भी क्यों अरमान जगाते हैं॥१॥
खुद से ज्यादा यकीं है फिर भी मन में शंका पाली है,
कभी सही तो कभी गलत की दुविधा मन में डाली है।
जीवन में न जगह है कोई फिर भी ख्याल हमारा है,
हमने भी तो ख्याल में तेरे अपना सबकुछ हारा है॥
श्वांसों में रहते हैं हर दम जीवन ज्योति जगाते हैं,
आस नहीं मिलने की फिर भी क्यों अरमान जगाते हैं॥२॥
मेरा तुमसे मेल नही पर कैसे यह संयोग बनाया,
चरणों की भी धूल नहीं जो उसको चन्दन कह अपनाया।
सही वेदना खुद ही सारी भेद नहीं फिर भी खोला,
नेह रहा, स्नेह रहा या प्रेम प्रणय, न कुछ बोला॥
माना ‘अंकुर’ उचित नहीं अब जो गुत्थी सुलझाते हैं
आस नहीं मिलने की फिर भी क्यों अरमान जगाते हैं॥३॥
-✍️ निरंजन कुमार तिलक ‘अंकुर’
छतरपुर मध्यप्रदेश 9752606136