आस तुम्हारे आने की
आने की आस में तेरी हरदम करता हूँ इन्तेज़ार
पाने को एक झलक मैं तेरी सदा बैचैन सा रहता हूँ
ना जाने कब होगा आना मेरे सूने जीवन में प्रिये
ख़्यालों में हर वक़्त तुम्हारे ही उलझा उलझा रहता हूँ
नैनों के तीर कब आकर मेरे दिल को कर देंगे घायल
दिल-ए-नादाँ को तेरे लिए हर वक़्त लिए फिरता हूँ
ख्वाबों में भी आना तेरा जीवन को महकाता है मेरे
खूबसूरत ख़्वाबों को अब मैं हकीक़त बनाना चाहता हूँ
जादू तेरी निगाहों का अब मुझ पर असर कर रहा है
निगाह ए नाज़ के आगोश में बस जीना चाहता हूँ
चेहरे का नूर तेरा गुलशन मेरा महका जाता है प्रिये
तेरे रुखसार की रंगत को आज मैं चुराना चाह्ता हूँ
दीदार ए हुस्न को अब हरदम मचलती हैं फ़िज़ाएं भी
फ़िज़ाओं का रुख मेरे दिलबर अब बदलना चाहता हूँ.
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट (मध्य प्रदेश)