आस का दीपक
कुछ रिश्ते थे जो टूट गये
कुछ साथ थे जो छूट गये
अब हो खुशियों का मेला
ये दिल रहता तनहा अकेला
सूनेपन की चादर ओढ़ कर
घर सोता है मुँह मोड़ कर
आँगन जाने कब से रूठा है
चौखट पर इंतज़ार बैठा है
आले में दीपक टिमटिमाता
आस की लौ उर में जगाता
छूट गए जो मिल जाएँगे
उधड़े रिश्ते सिल जाएँगे
बस थोड़ा सा धीरज धरना
सूरज का निश्चित निकलना
आँगन में फिर धूप खिलेगी
ख़ुशियाँ आज नही तो कल मिलेंगी
रेखांकन|रेखा