आस्था
आस्था स्वयंभू है,
स्वयं ही उत्पन्न होती है,
कोई बनावट नहीं इसमें,
कोई मिलावट भी नहीं इसमें,
यह पनपती है जमीन में,
किसी खूबसूरत गमले में नहीं ।
इसकी अंकुरें फूटती हैं,
पल्ल्वित, पुष्पित भी..
स्वत: होती रहती है ,
हृदय की गहराइयों में,
भावनाओं और विश्वास के घेरे में,
पर हल्की-सी चोट से,
टूट जाती है पल में,
पर यह बिकाऊ नहीं है ।
यह अमूल्य होती है,
यह बिकती नहीं है,
इसलिए किसी,
गमले में भी पनपती नहीं है ।
… अमृता मिश्रा