* आस्था *
शीर्षक – आस्था
लेखक : डॉ अरुण कुमार शास्त्री – पूर्व निदेशक – आयुष – दिल्ली
सेवक कहिए नौकर कहिए ,
या कहिए गुलाम ।
किंकर का तो काम है प्यारे ,
सबकी सेवा सुबह शाम ।
ध्यान लगा कर कर्म जो करता ,
भूल-चूक , से वो न करता ।
गलती से भी होती गलती ,
भरता दंड अनाम ।
सेवक कहिए नौकर कहिए ,
या फिर कहें गुलाम ।
सुघड़ सलोना उसका होना ,
गुण कारी कहलाता है ।
हर आदेश जो मालिक देता ,
उसको तुरंत निभाता है ।
ऐसा सेवक जल्दी ही
मालिक का चहेता हो जाता है ।
हरफन मौला, हुकुम का पाबंद,
होना उसको भाता है ।
जो न कर पाये ये सब,
तो तुरंत निकाला जाता है ।
उसके अधिकारों का
नहीं किसी को भान ।
सेवक कहिए नौकर कहिए ,
या फिर कहें गुलाम ।
कुछ नियमों में हुये हैं परिवर्तन ।
समय जो बदला तंत्र है बदला ।
व्यक्ति विशेष के मान सम्मान का ,
देखो भाई परिवेश है बदला ।
वेतन बदला , कार्य करने के नियम हैं बदले ।
समय के साथ – साथ भाव है बदला ।
नौकरी हो गई अब सम्मान , लोग तरसते
नौकर बन कर गर्व हैं करते जैसे जीव महान ।
सेवक कहिए नौकर कहिए ,
या फिर कहें गुलाम ।