आस्था का पर्व नवरात्र
आस्था है बनी हुई ।
मां तुम हरो मेरे आर्त ।
सारा जंहा भक्तिमय हो गया ।
मां आते ही तेरा ये नवरात्र ।
नव ही दिनो मे लगता है जैसे ।
कर लिए हमने सारे पश्चाताप ।
दुर्गा है तू हरने वाली ।
हर लो मां आप हम सबके संताप ।
बढ जाती है कीमत मौसम की ।
नीम, पीपल और तुलसी की ।
घर मे जलाए दीए है ।
तेरा ही स्वरूप मां दिल मे है ।
मां तुम सबसे न्यारी हो ।
हो सारे जग मे तुम प्रिय ।
प्रथम शैलपुत्री मां दिव्य स्वरूप ।
स्वयंप्रभा तुम्ही धरा की बागडोर हो ।
जंगल मे नाचता हुआ मोर हो ।
तुम्ही शाम और भोर हो ।
तुम्ही से रंगित मां सृष्टि की छोर है ।
ब्रह्मचारिणी अद्वितीय स्वरूपम् ।
जो है मां का द्वितीय प्रारूप ।
मां की आभा से मंडित है ।
वसुधा का पूरा कोर ।
मां के सम्मुख रश्मि विस्तृत घोर ।
तृतीय रूप मां चन्द्रघण्टा का ।
अलौकिक रूप उनके दिव्य छटा का ।
जयकारे के नारे से कोना -कोना पोर है ।
मंदिर के घण्टे की शोर है ।
धूपबत्ती से निकला धुंआ ।
जाता सब व्योम है ।
मिन्नत मांगे लोग ।
लगाके मां को भोग ।
जलधार चढाके ।
सुमन बरसाके ।
दीप जलाके ।
चुनरी फहरा के ।
मां के चरणो मे शीश नवाके ।
जो भी है कुछ मांगे ।
समझो वो तो पूर है ।
आपके ही तो कृपा से मईया ।
हम सबका जीवन खुशी से भरपूर है ।
आप के आंखो का तो मां ।
फैला चहूं ओर नूर है ।
चतुर्थ कुष्मांडा मां का रूप है ।
उन्ही के दृष्टिकोण से ।
कोई रंक कोई भूप है ।
वो तो बस अपने कर्मो ।
और मति के पाता अनुरूप है ।
हाथो मे है उनके समृद्धि ।
रोग, शोक को वो हर लेती ।
फैलाती है वो सुख की ज्योति ।
पंचम मुख स्कंदमाता मां ।
सबकी भाग्य विधाता मां ।
तेजो की खान,शक्ति का है निनाद ।
मां को संकट मे जिसने भी पुकारा ।
करती उसका कल्यान है ।
षष्ठम है मां कात्यायनी ।
सृष्टि ने जिनकी महिमा मानी ।
चरणो तले लेट शंभु करते ।
जिनकी रजपानी ।
असुरो का संहार कर ।
कहलायी तू खप्पङवाली ।
मां की महिमा रोज हम गाए ।
गाके पचरा और कव्वाली ।
श्वास खींचकर शंख बजाए ।
दे ताली पे ताली ।
सप्तम कालरात्रि मां ।
थाली मे कर्पूर जला कर आरती ।
बांधते समा ।
जयकारे से करते गान ।
गरबा करके नाच रहा ।
झूम के आज सारा जहान ।
जय माता दी का कर निनाद ।
टोना -टोटका छोङो तुम ।
ये सब है अंधविश्वास ।
मां तेरे ही चरणो मे लेटा रहूंगा ।
जब तक चलती रहेगी सांस ।
मन मे कभी न लाउंगा अभिमान ।
अष्टम महागौरी माता का ।
करते है हम गुणानुनाद ।
गौरी महेश भार्या तुम ।
सारे जग मे हो विख्यात ।
गर साथ हो जिसके आप मां तो ।
कोई न दे पाए उसको मात ।
नई -नई कपोले निकल रही इस ऋतु मे ।
स्वागत करते तरु आपका बारम्बार ।
सिंह है आपकी सवारी ।
गर्जना उसकी निर्भयकारी ।
असुरो के संहार मे ही ।
मां आपने है ये नौ रूप धरी ।
क्लेश तुम हरती ।
श्रद्धा -सबूरी तुम भरती ।
अपने भक्तो का मां रखती ख्याल ।
उनको करती है खुशहाल ।
नवम रूप सिद्धिदात्री मां ।
सबकी करती सिद्धि पूर्ति मां ।
तुममे वो कांति स्फूर्ति मां ।
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा ।
दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा ।
कर मे शंख, गदा, त्रिशूल है ।
अस्त्र -शस्त्र को धारण कर ।
दैत्यो को करती विध्वंस ।
जिससे फिर उपज न पाए ।
वसुधा पर उनका कोई अंश ।
शोभा को तो और बढाए ।
मां ये तेरा रूप नवल ।
मां तेरा आसन है कमल ।
जो है बेहद स्वच्छ, विमल ।
चीर भी है शुभ्र धवल ।
कैसी है ये आभा मुख पर ।
सम्मुख इसके रवि धूमिलकार ।
मां ये तेरा है चमत्कार ।
संतो की सुनती चीत्कार ।
नव तक ही सब पूर्ण अंक ।
इसके आगे सब निष्कलंक ।
नव से ही नवधा का ज्ञान ।
तेरे चरणो मे लेटकर मईया ।
हर्षित, प्रफुल्लित ये जहान ।
प्रेम से बोलो जय माता दी ।
की गूंज लगाए सब ओर छलांग ।
शब्दो मे है भरा ।
कैसा दिव्य सा उमंग ।
जय माता दी कहते ही ।
सब कष्ट हो गए अंग -भंग ।
कलरव करते उङ रहे ।
सब कीट और विहंग ।
एक बार फिर से बोलो जय माता दी ।
जय हो अपनी देश की मां भारत भूमि ।
??Rj Anand Prajapati ??