आस्तीन के साँप
धुआँ उठा हैं, सुलग रहा कुछ
छुपे हुए अंगारों से ।
वर्षा फिर से मेहरबान है
वामांगी गद्दारों से ।
हवा देखिये मेघ देखकर
उन्हें उड़ाने को निकली ।
नहीं चाहती भांड़ा फूटे
पुन: करे गलती पिछली ।
राष्ट्र का दुर्भाग्य पूँछता
तुष्टीकरण मिटेगा कब ।
पहले मुस्लिम और दलित भी
हुआ मोहरा इसका अब ।
सत्तर सालों से आरक्षण
पी पी अमृत पुष्ट हुये ।
संविधान संशोधन शह से
रक्तबीज बेखौफ जिये ।
हर चुनाव आने से पहले
सत्तापक्ष विपक्षी खेमा ।
भांंझा करते हैं तलवारें
पंथक पंथी संत,उलेमा ।
सरस्वती ने गतिशील को
बुद्धि दी, न दिया विवेक ।
असहिष्णणुता बुद्धिवाद से
नहीं आस करें हम नेक ।