Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
19 Oct 2022 · 8 min read

आस्तीक भाग-आठ

आस्तीक – भाग- आठ

अशोक का परिवार विशुद्ध रूप से ब्राह्मण था घर मे प्याज ,लहसुन ,गाजर, मूली, शलजम आदि आना वर्जित था
खाना तो बहुत बड़ी बात ।

भारतीय सनातन परम्पराओ का प्रतीक एव संस्कृति संस्कारो के ध्वज वाहक के रूप में क्षेत्र में जाना जाता था ।

पण्डित जी का परिवार पांडित्य कार्यो में आमंत्रित किया जाता था यजमानी परम्परा का केंद्र था चाहे सत्यनारायण की कथा हो या वैवाहिक कार्य या मरणोपरांत श्राद्ध सभी मे पंडित जी के परिवार को बुलाया जाता श्रद्धा हो या सांमजिक बाध्यता लेकिन पण्डित जी के परिवार को अवश्य बुलाया जाता ।

अशोक को भी ऐसे कार्यो में जाना पड़ता और पारिवारिक कार्यो को ही आगे बढ़ना पड़ता कभी कभार ही सही लेकिन जाना अवश्य पड़ता।

अशोक मामा के लड़कों के यग्योपवित संस्कार से लौटा ही था कि बगल के गांव परासी चकलाल के पुराने प्रतिष्टित परिवार के रामसुभग मिश्र के श्राद्ध में पण्डित जी के समूचे परिवार को आमंत्रित किया गया जिसमें अशोक भी गया कार्यक्रम में बहुत देर हो गयी रात के लगभग आठ नौ बजे गए गांवों में यह बहुत देर रात्रि मानी जाती है अशोक जब रात्रि को कार्यक्रम से लौटने लगा तब उसकी एक चप्पल कही गायब हो गई जिसे छोटका बाबा ने उसके मामा के यहॉ मामा के लड़कों के यग्योपवित संस्कार में सम्मिलित होने के समय खरीदा था अशोक चप्पल गायब होने से बहुत डर गया उंसे समझ नही आ रहा था कि वह छोटका बाबा को क्या जबाब देगा वह एक पैर में चप्पल ऐसे पहन कर चलने लगा कि साथ चलने वालों को आभास हो कि दोनों पैरों में अशोक ने चप्पल पहन रखी हो और घर वालो को कोई शक की गुंजाइश ना हो किसी तरह घर पहुंचा अशोक ।

सुबह जब घर के लांगो ने देखा कि अशोक कि सिर्फ एक ही चप्पल है तो अशोक से पूछा दूसरी चप्पल कहां है अशोक के पास कोई जबाब नही था अशोक को लापरवाही के लिए बहुत फटकार मिली ज़िसे सुनने के अलावा कोई चारा नही था ।

नित्य परिवार में किसी ना किसी धार्मिक कार्यो के लिए यजमानों के बुलावे आते रहते थे जिसमें अशोक के परिवार का जो भी बड़ा बूढ़ा होता जाकर सम्पादित कराता ।

रतन पूरा गांव का ही एक टोला था गौरा जिसके कारण पूरे गांव का राजस्व गावँ का नाम रतन गौरा था गौरा में एक राजपूत परिवार बलजीत राय दूसरा बद्री हज़म,तीसरा केदार पांडेय ये तीन परिवार सुविधा साधन संपन्न थे इसके अलावा कुछ गोसाई परिवार थे ।

बलजीत राय विवाह आदि अवसरों पर पहले खाना बनाने का कार्य करते थे बाद में उनके परिवार के लोग बैंकाक गए और उनके परिवार की स्थिति आर्थिक रूप से बहुत सम्पन्न हो गयी इसी प्रकार बद्री हज़ाम के घर के लोग भी बैंकाक रहते थे जिसके कारण वह परिवार भी आर्थिक रूप से सम्पन्न था ।

बद्री हज़ाम बैंकाक से आये थे और उन्हें सत्यनारायण की कथा सुननी थी कथा सुनाने के लिए अशोक के घर आये और निवेदन किया महाराज जी के यहॉ से किसी को कथा सुनाने आने के लिए अशोक के घर कोई बढ़ा बूढ़ा नही था सभी बाहर गए थे अशोक की आयु पांच वर्ष कि थी अशोक की दादी ने बद्री से कहा( घरे केहू ना बा के जाई कथा वांचे ) दादी जी के पास अशोक खड़ा था बद्री ने बड़े सम्मान् के साथ कहा (जाए देई केहू ना बा त कौनो बात नाही हई बाटे न पण्डित जी के परिवार के लड़िका इहे आके अपने मुंह से कुछो बोल दिहे हमारे परिवार खातिर सत्यनारायण कथा हो जाई) दादी ने कहा (जब तोहार इतना श्रद्धा बा त ई चल जाहिये) दादी ने मुझे पीले रंग की धोती पहनाया और एक झोले में सत्यनारायण कथा की पुस्तक एव भगवान शालिग्राम की मूर्ति रख कर कहा (चल जा गौरा बद्री की यहॉ कथा वाच आव) अशोक को समझ नही आ रहा था कि वह क्या करे लेकिन उंसे संस्कृत कि शिक्षा बचपन से ही पाणनि के सूत्रों के शुभारम्भ से दी गयी थी अतः संस्कृत पढ़ने में उंसे कोई परेशानी नही थी ।

अशोक बद्री के घर पहुंचा वहां बद्री का पूरा परिवार औरतें बच्चे सभी बड़े आदर के साथ प्रतीक्षा कर रहे थे अशोक के पहुँचने के बाद श्रद्धा से स्वागत किया और कथा सुनने के लिये सारा परिवार बैठा अशोक ने सत्यनारायण कि कथा सुनाई जिसे पूरे परिवार ने उतनी ही श्रद्धा से सुना जितनी निष्ठा ईमानदारी से अशोक ने सत्यनारायण कि कथा सुनाई ।

उस समय बीस आने सालिग्राम पर बद्री के परिवार ने नगद चढ़ाया एव अशोक को पांच रुपये दक्षिणा स्वरूप दिए और बहुत आदर के साथ विदा किया अशोक रास्ते भर पाए सम्मान से अभिभूत घर पहुंचा और दक्षिणा का सारा पैसा सवा छः रुपये दादी के हाथ पर रख दिये।

दो तीन दिन बाद छोटका बाबा से बद्री की मुलाकात हुई उन्होंने बताया कि महाराज जी आपके पोते अशोक से हमने सत्यनारायण कि कथा सुनी इतना विधिवत और पवित्र त्रुटि रहित तो कोई बड़ा विद्वान भी नही सुना सकता है बैंकाक में भी यहां के पण्डित जी लोग है लेकिन अशोक की तरह कोई नही धन्य बा आपके परिवार जहाँ वंश जन्मते अभिमान बा छोटका बाबा घर आये और सारे परिवार के समक्ष अशोक कि भूरी भूरी प्रशंसा कि अशोक को तो जैसे विद्या विशारद का सम्मान पांच वर्ष की ही आयु में मिल गया हो वह फुले नही समा रहा था।

अशोक को अब छोटे छोटे पांडित्य कार्यो में भेजा जाने लगा जैसे मकर संक्रान्ति ,षष्टी व्रत सूर्यपूजा छठ, पुत्रेष्टि व्रत, जियउत्तिया आदि आज भी जब कोई अशोक के दरवाजे इस तरह के ब्राह्मण बालक आते है तो अशोक को अपने बचपन याद आ जाता है निश्चित रूप से भारत जैसे राष्ट्र में उसकी संसास्कृतिक विरासत ही उसकी एकात्म बोध कि धुरी है जो सत्य सनातन कि कोख से उदित होती है ।

पांडित्य कर्म और यजमानी की दो महत्वपूर्ण घटनाएं अशोक को कभी नही भूलती पहली घटना गांव की है गाँव के ही टोले के पण्डित केदार पांडेय जी के यहॉ किसी की बहुत अधिक आयु में मृत्यु हुई थी जिसके श्राद्ध कि पूरे इलाके में चर्चा थी अशोक भी श्राद्ध कर्म के भोज में आमंत्रित परिवार के साथ गया हुआ था भोजन शुरू हुआ और समाप्ति के बाद अशोक उठने को हुआ तब आतिथेय परिवार के लांगो ने सभी बच्चों को बैठाया और पांच रुपये प्रति पूड़ी भोजन उपरांत खाने पर दिया जाने लगा अशोक भी प्रतियोयोगिता में सम्मिलित हो गया कुछ देर बाद पच्चीस रुपये प्रति पूड़ी यानी एक पूड़ी खाने पर पच्चीस रुपये नगद पुरस्कार फिर पचास रुपये पुनः सौ रुपये प्रति पूड़ी अशोक ने पांच वर्ष की आयु में लगभग एक सौ आठ पुड़िया खा लिया पता नही उंसे हो क्या गया था लेकिन खाने के बाद उसे घर के दो लांगो ने हाथ पकड़ कर उठाया और घर तक ले आये और घर आते आते उंसे अतिसार हो गया जितना पूड़ी खाने में पुरस्कार नही मिला था उससे बहुत अधिक इलाज में खर्ज हुआ किसी तरह जान बची।

दूसरी महत्वपूर्ण घटना कानपुर कि है बादशाही नाके में रामाश्रय वर्तन व्यवसायी का परिवार रहता था जो अब के ब्लाक किदवई नगर कानपुर में रहता है पित्र पक्ष में अपने पिता जी कि याद में मेरे मझले बाबा को बुलाते एव पूजन के बाद भोजन कराते एक वर्ष मझले बाबा नही थे वे कोलकाता गये हुये थे खास बात यह थी कि रामाश्रय जी के यहां सिर्फ मझले बाबा ही जाते परिवार का अन्य कोई सदस्य नही जाता अब समस्या यह थी कि रामाश्रय जी के यहां जाए कौन इस समस्या का निदान रामाश्रय जी ने ही कर दिया उन्होंने अशोक को ही बुलाया अशोक की उम्र उस समय चौदह पंद्रह वर्ष कि रही होगी अशोक ठीक समय पर बादशाही नाके पहुंचा रामाश्रय जी अशोक का इंतज़ार कर रहे थे अशोक के पहुँचने पर बड़े आदर से उन्होंने अशोक का आदर सम्मान किया और भोजन पर बैठाया भोजन में उन्होंने खोया कम चीनी का एव दही दिया पहले तो अशोक को बहुत आश्चर्य हुआ कि यह कौन सा भोजन है रामाश्रय जी अशोक के संसय आशय को समझ बताया कि महाराज जी को हम यही भोजन करताते है।

अशोक ने दही और खोया शुरू ही किया था लगभग दस नेवला खाने के बाद उसके हिम्मत ने जबाब दे दिया दक्षिणा देकर बहुत सम्मान् के साथ रामाश्रय जी ने अशोक को विदा किया अशोक ने घर आकर खोया दही के आहार के विषय मे जानकारी प्राप्त किया पता चला की ऐसा आहार है जो अधिक खाया ही नही जा सकता और जितने कैलोरी कि शरीर को आवश्यकता होगी उससे अधिक भोजन स्वय आपको मना कर देगा यानी खाने वाला खा ही नही सकता चाह कर भी पेट भरा होगा मन जुबान इजाज़त नही देती ।

अशोक ज्यो ज्यो बड़ा होता गया पांडित्य कर्म यजमानी की आस्था को जानने समझने एव वैदिक तथ्यों को समझने की कोशिश करने लगा हालांकि अशोक को समझने की आवश्यकता इसलिये भी नही थी कि उसने बचपन के अलावा कभी यजमानी या पांडित्य कर्म में रुचि नही दिखाई जबकि स्वयं उसने सभी धर्मों की गहराई को उतना अधिक जनता समझता है जितना उस धर्म के सर्वश्रेष्ठ मर्मज्ञ साथ ही अशोक को दैविक या आध्यात्मिक या जो जिस संदर्भ में समझे बैज्ञानिक भी कह सकता है शक्तियां पूर्ण प्राप्त है जिसके लिए उसने कभी गर्व अभिमान या भौतिक लाभार्थ प्रयोग नही किया किया भी या करता भी है तो निस्वार्थ लेकिन उसे पांडित्य कर्म एव यजमानी के सम्बंध में जो निष्कर्ष पाए है ।

वह बहुत तार्किक प्रमाणिक और सत्य है यजमान को अपने पुरोहित से उम्मीद विश्वासः रहता है कि वह उसके द्वारा किये पापों का शमन कर उसे सद्गति सदमार्ग पर ले जाएगा और इसी आस्था के वशीभूत वह अपने पुरोहित को ईश्वर के समान दर्जा देता है यदि पुरोहित में यजमान के पापो अपराधों शमन कि क्षमता उसका भोजन दान स्वीकार करने के उपरांत नही है तो पुरोहित पांडित्य का कार्य करना बहुत बड़ा अपराध है ऐसी स्थिति में यजमान कि आस्था उसका संदेहरहित विश्वासः उसे तो हानि नही पहुंचाता किंतु पुरोहित के लिये जन्म जन्मांतर के लिए मानव जन्म के दरवाजे बंद कर देता है ।

यदि पुरोहित सक्षम है यजमान के अपराधों एवं पापो को शमन करने में तो वह दान स्वीकार भी कर सकता है और योग्य पुरोहित है।

विश्वामित्र रघुकुल के ऐसे ही पुरोहित थे ,कृपाचार्य चंद्रवंशियों के पुरोहित पिरोहित यजमान के परिवार की दृष्टि दिशा एव मार्गदर्षक होता है ।

वर्तमान में यजमान एव पुरोहितों का रिश्ता एक दूसरे के समय स्वार्थ पर निर्भर है जो यजमान पुरोहित नही बल्कि धार्मिक रूप से कहे तो दोनों एक दूसरे के लिए अपराध एव पापो की खाई गहरी करते है।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।

Language: Hindi
166 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
View all
You may also like:
शीर्षक:
शीर्षक: "ओ माँ"
MSW Sunil SainiCENA
प्यार को शब्दों में ऊबारकर
प्यार को शब्दों में ऊबारकर
Rekha khichi
मां का घर
मां का घर
नूरफातिमा खातून नूरी
"उपकार"
Dr. Kishan tandon kranti
उसे मैं भूल जाऊंगा, ये मैं होने नहीं दूंगा।
उसे मैं भूल जाऊंगा, ये मैं होने नहीं दूंगा।
सत्य कुमार प्रेमी
फिर एक समस्या
फिर एक समस्या
A🇨🇭maanush
और नहीं बस और नहीं, धरती पर हिंसा और नहीं
और नहीं बस और नहीं, धरती पर हिंसा और नहीं
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
मृत्युभोज
मृत्युभोज
अशोक कुमार ढोरिया
!........!
!........!
शेखर सिंह
18, गरीब कौन
18, गरीब कौन
Dr Shweta sood
♤ ⛳ मातृभाषा हिन्दी हो ⛳ ♤
♤ ⛳ मातृभाषा हिन्दी हो ⛳ ♤
Surya Barman
जागेगा अवाम
जागेगा अवाम
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
मेरी मलम की माँग
मेरी मलम की माँग
Anil chobisa
2737. *पूर्णिका*
2737. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
प्रेमी चील सरीखे होते हैं ;
प्रेमी चील सरीखे होते हैं ;
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
अंध विश्वास एक ऐसा धुआं है जो बिना किसी आग के प्रकट होता है।
अंध विश्वास एक ऐसा धुआं है जो बिना किसी आग के प्रकट होता है।
Rj Anand Prajapati
शहीद दिवस पर शहीदों को सत सत नमन 🙏🙏🙏
शहीद दिवस पर शहीदों को सत सत नमन 🙏🙏🙏
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
"धन वालों मान यहाँ"
Arise DGRJ (Khaimsingh Saini)
हमें प्यार ऐसे कभी तुम जताना
हमें प्यार ऐसे कभी तुम जताना
Dr fauzia Naseem shad
मैं तो महज एहसास हूँ
मैं तो महज एहसास हूँ
VINOD CHAUHAN
सबका भला कहां करती हैं ये बारिशें
सबका भला कहां करती हैं ये बारिशें
Abhinay Krishna Prajapati-.-(kavyash)
भाव  पौध  जब मन में उपजे,  शब्द पिटारा  मिल जाए।
भाव पौध जब मन में उपजे, शब्द पिटारा मिल जाए।
शिल्पी सिंह बघेल
■ बोलते सितारे....
■ बोलते सितारे....
*Author प्रणय प्रभात*
💐अज्ञात के प्रति-140💐
💐अज्ञात के प्रति-140💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
यूं हर हर क़दम-ओ-निशां पे है ज़िल्लतें
यूं हर हर क़दम-ओ-निशां पे है ज़िल्लतें
Aish Sirmour
समय
समय
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
Don't let people who have given up on your dreams lead you a
Don't let people who have given up on your dreams lead you a
पूर्वार्थ
मत पूछो मेरा कारोबार क्या है,
मत पूछो मेरा कारोबार क्या है,
Vishal babu (vishu)
"जून की शीतलता"
Dr Meenu Poonia
युद्ध के विरुद्ध कुंडलिया
युद्ध के विरुद्ध कुंडलिया
Ravi Prakash
Loading...