आस्तिक और नास्तिक!
कुछ व्यक्ति अपने आप को नास्तिक मानते हैं। लेकिन उन्हें इस शब्द का अर्थ नही मालूम है।कि आस्तिक और नास्तिक की परिभाषा क्या है? वैसे तो कोई भी व्यक्ति नास्तिक नहीं होता है।उसका केवल एक भाव होता है। क्योंकि उसका जीवन जिस पर टिका हुआ है।वह आस्तिक है।मानव यह सोचता है कि कहीं कोई ईश्वर नही है। बहुत सारे व्यक्ति जो कुछ बोलते हैं,पर उन्हें उस शब्द का अर्थ नही मालूम होता है। ऐसे ही आस्तिक और नास्तिक है! व्याकरण के अनुसार यह शब्द विशेषण हैं। और यह मानव के स्वभाव की विशेषता बता रहे हैं। क्योंकि ईश्वर ने मनुष्य के लिए जो प्राण वायु बनाई है ,वह क्या किसी को दिखाई देती हैं।अब कोई इसे माने, या ना माने वह अपना काम करना तो नही छोड़ देगी। ईश्वर के द्वारा किये गये कार्य का हम अनुभव तो कर सकते हैं। वहीं ईश्वर है। मनुष्य किसी भी शब्द, शक्ति को माने अथवा न माने , ईश्वरीय शक्ति हमेशा अपना काम करतीं रहतीं हैं।