आसमान – घौंसला !
आसमान – घौंसला !
आसमान कब झुका है ,
किसी भी पंछी की चाहत में ?
फिर भी चुनता है हर एक पंछी आसमान को ! पंछी का आस्तित्व के लिए घौसलें से ज्यादा जरूरी हो जाता आसमान ;
सवाल पहचान का जो ठहरा !
जैसे तुम्हारे लिए जरूरी है ,
तुम्हारी स्वछंदता का आसमान,
जहां तुम फैला सको स्वतंत्र हो कर अपने पंख _
क्योंकि शायद तुम्हारी पहचान को रौंदने के लिए ही बने हैं यह घौसले ।
मैं चाहता हूं,
तुम्हारी पहचान बने तुम्हारे सपने और आशाएं :
भले फिर उस पहचान कि कीमत हो,
उस घौंसले का टूट जाना या आसमान में पनाह पाना ।
हो सकता है,
घरौंदे से बिछड़े पंछियों की पीड़ा का भान ना हो मुझे,
लेकिन मेरा यकीं करो, मैंने सुनी है चीख उन पंछियों की जिनके पर कतर दिए गए :
और इस से भयावह वो चीख ,
जो मेरी रूह को तार तार कर देती है –
उस पंछी की,
जिस ने खुद ही कतर दिए थे अपने पंख :
कभी घौसले की घुटन के चलते तो कभी विशालकाय आसमान के आगे ।
लेकिन याद रखना,
तुम्हारे पंख तुम्हारी उड़ान के गवाह बने ना बने पर मेरी जान वो हमेशा रहें तुम्हारी स्वछंदता की वजह ।