आसमान के चांद को
मेरे घर का
एक छोटा सा कमरा
अब तो
मेरी दुनिया है
इस घर की देहरी के पार
अब मुझे जाना भी नहीं
है
खिड़की के बाहर
बहती ठंडी हवा को भी
अब मेरे पास आना नहीं है
चांद है मेरी बाहों में और
मैं मल्लिका
आसमान की
आसमान को पर
बस दूर से देखना है
आसमान से छीनकर
आसमान के चांद को
जमीन पर उतारना नहीं है।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001