आसमां में चाँद…
आसमां में चाँद छुपकर रो रहा है क्यूँ भला
चाँदनी का नूर मद्धिम हो रहा है क्यूँ भला।
धूल की परतें जमी हैं आदमी की सोच पर
नफ़रतों की फस्ल पूछो बो रहा है क्यूँ भला।
हो रही गंदी सियासत मजहबी कंधों तले
देश का हाक़िम न जाने सो रहा है क्यूँ भला।
सिर्फ़ दौलत की चमक में नाच नंगा हो रहा
और ईमां धुंध माफिक खो रहा है क्यूँ भला।
सींचकर बंजर ज़मीं को मर रहा बेमौत है
जख़्म गहरे खूं से आखिर धो रहा है क्यूँ भला।
लोग मुड़कर पूछते हैं ऐ “परिंदे” सुन जरा
मौत का फरमान आखिर ढो रहा है क्यूँ भला।
पंकज शर्मा “परिंदा”
खैर ( अलीगढ़ )
9927788180