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7 Oct 2016 · 1 min read

आसक्ति

तुम जिसे आसक्ति कहते हो
मैं उसे प्यार कहती
न पता
कोई कस्तूरी है या
मरीचिका
जो खीच लाई है
तुम्हें
पास मेरे शनै – शनै
यहीं तो मारग है
प्रेम का
जो राह दिखा
नित नवीन सृजन
कराता

बन्ध प्रेम के नित नये
मैं बाँधने लगती हूँ
पर नहीं इसमें
श्रृंगार की अश्लीलता
तूफानी उद्दाम
वेग का चरम
हृदय की निष्कपटता
रहती है
आतुर प्रेमी हृदय का
करूण क्रन्दन
नित गीत
सुनाता है

अनुरक्तता हृदय
की फैली है
इतनी कि मैं
तुझमें ही सिमट
कर रह जाऊँ
प्रेम की मोहिनी ऐसी
बार -बार बहक जाऊँ
दूर भागूँ जितनी मैं
उतनी पास पाऊँ

Language: Hindi
73 Likes · 747 Views
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