आषाढ के दिन
आषाढ के दिन
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मन की उमस
बहुत हुआ ताप बस
अब तो बरस
खुले बहाव के दिन
कटोरा भर अभाव के दिन
आषाढ़ के दिन
छत से उड़ी
तिरपाल के दिन
हर ईंट से रिसते पानी
सीली सीली लकड़ी
बुझे बुझे अलाव के दिन
आषाढ़ के दिन
तटबंध तोड़ती नदियां
बहते बहते खेत
टापू टापू हुये
गांव के दिन
जन का जन से
कटाव के दिन
आषाढ़ के दिन
बाढ़ के दिन
साँपों के जहर से
बिच्छुओं के डंक स
दर्द के सैलाब में
आँख के भराव के दिन
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राजेश’ललित’