आश किरण
फूटेगा ज्वालामुखी, बहेगा अब लावा ।
अर्ज दर्ज,विनती नही,करेंगे अब दावा ।।
जलायी है ये मशाल,मिटेगा ये अंधेरा ।
हटेगा हर मुखौटा, दिखेगा हर चेहरा ।।
मिल रहे हैं हाथ, साथ चल रहें कदम ।
मंजिलें खुद ही, पास आ रही हरदम ।।
ये एक छोटी सी भी आशा की किरण ।
भी बन सकती है शक्तिपुंज विकिरण ।।
अब ये सारे सपने होंगे ही सब साक्षात् ।
खुलेंगे राज रहेगा नही कुछ भी अज्ञात ।।
वंचित,विस्मृत,विफल,विकल,बिसारे-सारे ।
ये पायेंगे स्वाभिमान,शक्ति,सामर्थ्य,सहारे ।।
अब पंक्ति का अंतिम दीप भी जगमगाएगा ।
न कोई भी यहां बेसहारा,बेबस डगमगाएगा ।।
बहेगी समरसता नहायेगा ये मानव महान ।
उत्कर्ष मानव का कर बनायेंगा नव जहान ।।
ये राज्य,साम्राज्य, रामराज्य से कहीं आगे ।
राज,राजे,शासक छोड़, जनता राज जागे ।।
हो जनता ही जनार्दन, हो जनता ही नरेश ।
ये दुनिया हो परिवार,परिजन हो सब देश ।।
यहां न हो कोई अड़चन, न बंधन बाधाएं ।
स्वछंद हवाओं सी, ना जाने हम सीमाएं ।।
ये सब अलग-बिखरे महाद्वीप, देश-प्रदेश ।
जोड़ सकता इन सबको तेरा प्रेम-संदेश ।।
मानव हैं तो मानवता का पहन ले ताज ।
कर अपने से शुरू, बुलंद इसकी आवाज ।।
बस मानवता ही राज, मानवता ही नाज ।
तड़प रही दुनिया, फैला दे इसको आज ।।
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मौलिक एवं स्वरचित : रचना संख्या-०८
जीवनसवारो,मई २०२३.