आशिक़ी के ऐतराज़
आशिक़ी के ऐतराज़
मोहब्बत से टूटा
मोहब्बत ने लूटा
दिल पे लगा के इलज़ाम
मैंने अपने ही यार को कहा झूठा ।
फिर आई परस्तिश की बारी
देव के ऊपर शैतान भारी
शैतान का सताया
लौट देव के ही चरणों में आया ।
करी तौबा इश्क़ से मैंने
योग माया का लेकर सहारा
भक्ति में गुम हो कर पकड़ा
पल्लू आस्था का ।
तुम ने आने में सनम
बहुत देर कर दी
सर्दी के मौसम में हमने
कांगड़ी से अपनी दोस्ती कर ली
छुपाता कहाँ तक मैं
हक़ीक़त का आशियाना
राज़ तो खुलना ही था
बेहतर था खुद से बताना ।
रूठे रूठे से आशिकों की
हरकतें होती हैं एक दम बचकांना
मेरे दामन में कोई तुम
बेबसी का दाग न लगाना ।
मोहब्बत से टूटा
मोहब्बत ने लूटा
दिल पे लगा के इलज़ाम
मैंने अपने ही यार को कहा झूठा ।