आशियाना
यूँ गुल हुए हैं चिराग महफिल के कि
आसमाँ में भी कोई सितारा न हुआ !
एक अपना था जो बरसों से
वो भी आज हमारा ना हुआ !!
आग लगी हर कोने में बुनते ही
कोई नामो निशाँ उसका ना रहा !
वर्ना मुहब्बत के ताने बाने सँजो
एक आशियाने का अरमान हमारा भी रहा !!
सुखा लिये थे आँखो के अश्क मैने
दुनियाँ वालों को कुछ जाहिर ना हुआ !
पर नश्तर बन कर चुभते है जिगर में
उम्र भर के दर्द का ये सामान हमारा हुआ !!
एक बार भरा प्याला होठों से लगने
से पहले ही फिसल कर चूर हुआ !
बस तबसे ही टूटे काच की चुभन से
मेरे दिल का नाता मशहूर हुआ !!
दुनिया मे बहुत से लोग है मगर
हम सा बेचारा शायद कोई ना हुआ !
मंजिल तक तो हम पहुँच गये लेकिन
फासला फिर भी कई जन्मो का रहा !!