“आशिकी”
आगोश में आते ही,
गम कोसों दूर हुए,
तारें ज़मीं पर दिखने लगे,
हम ऐसे मदहोश हुए,
मदहोशी का यह आलम है,
बिन पिये नशे में चूर हुए,
ज़ुल्फ़ जो लहरायी,
वही घटा घनघोर हुई,
साकी, न जाम, न मयखाना,
शरबती आँखों से ही,
नशे में चूर हुए,
अधरों ने अधरों से,
जाम ऐसे पिए,
मय से कोसों दूर हुए,
बद थे, बदनाम थे ज़माने में,
क़िस्साये, आशिक़ी अब मशहूर हुए,
साँसों ने साँसों को छुआ ऐसे,
वो हमारे “दिले – नूर” हुए,
काफ़िर का तगमा,
लिए फ़िरते थे ज़माने में,
अब आशिक़ी के लिए ही सही,
“शकुन” मशहूर हुए ||
– शकुंतला अग्रवाल, जयपुर