आशिकी
डा. अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
* आशिकी *
हकीकत से रु ब रु होना ही चाहिए |
मिरे यार को भी ये इल्म होना चाहिए ||
नहीं इतनी आसां ये दिलों की बिमारी |
पडी जिसके पल्ले है बखिया उधाड़ी ||
मोहब्बत में उलफत औ उलफत में गफ्लत
कभी कोई शिकवा या कोई शिकायत
यही इसकी आदत यही दुनियादारी
करोगे कहाँ तक तुम इसकी तीमारदारी
बजाया सभी का है बाजा तो इसने
नही कोई जीता सभी पर है भारी