आशिकी कर बैठे हैं
जख्म पे जख्म मिल रहे , पर जी कर बैठे हैं
मुहब्बत के जहर को , पी कर बैठे हैं
शिकायतें लाखों करनी हैं उनसे पर
कहीं खो ना दूं , लबों को सीं कर बैठे हैं
इश्क के नाम पर वो वक्त गुजार रहे
और हमसे कहते , आशिकी कर बैठे हैं
जख्म पे जख्म मिल रहे , पर जी कर बैठे हैं
मुहब्बत के जहर को , पी कर बैठे हैं
शिकायतें लाखों करनी हैं उनसे पर
कहीं खो ना दूं , लबों को सीं कर बैठे हैं
इश्क के नाम पर वो वक्त गुजार रहे
और हमसे कहते , आशिकी कर बैठे हैं