*आशिक़*
डॉ अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
*आशिक़ *
आशिकी के अफसाने
जितने भी छुपा लो।
क्या कभी हैं ये छुपने वाले
सावधानी बरतना।
बात अच्छी है मगर
मुंह छुपा कर।
निकल जाना
गलत होता है।
कोई गिला नहीं
तुमने देखा होगा।
जमाने भर में
गलतफहमीयों से कितना।
तनाव होता है
यूं तो जाने अनजाने।
बढ़ा लो कितने तनाव
जिंदगी को अपनी।
गलतफहमीओं का पुल
अंधा धुंध बना लो।
बढ़ाकर दूरियां मुझसे
तुझको क्या मिलेगा।
आशिकी का फलसफा है
रोज मिलते रहे तो ठीक।
बाद हफ्ते के जो मिलोगी
तो क्या मिलेगा।
भटक ना जाए
यह बशर देख लो।
दुनिया की भीड़ में
ढूंढने जो निकलेगी तो।
लिख के ले लो
क्या पता मिले न मिले।
गर मिले तो किसी और
की शयन गाह में मिले।