आशा
आई धरा पर सूरज की लाल चमकती किरणे ,,
पर्वत भी आगे सामने नतमस्तक हुआ ,,
जैसे कि मन आशा का भोर हुआ ।
खिल खिले यह आशा के सुमन ,,
करते है फूल सूरज को भी नवीन संवत का नमन ।
सूरज की किरणें एक आशा है
जो जीवन की सदा राजा है
आशा पर दुनिया कायम,,
आशा से जीता इंसान ,
जीवन ज्योति है यही है विज्ञानः ।
यदि चले विरोधी हवा हमारे प्रतिकूल ,
पर सब छोड़े,
मगर आशा से कभी मुह न मोड़ें ।।
बनते आशा से बिगड़ते काम ,,
आशा से शबरी को मिले श्री राम ।
सपने पूरे हो ,आशा से आज ही नवीन वर्ष में नाता जोड़ो ।
मगर आशा से कभी मुह मत मोड़ो ।
आशा सबका मूल धर्म है
चाहे गीता हो या कुरान ,,,
आशा से ही तैरते पत्थर में बसे राम भगवान ।
चाहे जिंदगी में सब छोड़ो मगर आशा से कभी मुह न मोड़ो ।
आशा की किरणों से हुआ नया हिन्दू वर्ष का आगाज ,,
जो जगा मन मयूर नाचता हुआ विश्वास ।
आशा की किरणों में प्रथम देवी शेल पुत्री आई ,,
जो आज से ही नवरात्रि चली आई।
इस आशा के आंगन में हम सब सूरज की किरणों में ऊर्जावान बनो
,,
नया पल्लव ,नया आम्र कोपली ,
कुकु सी कोयल बोली
हुआ भोर अभिन्दन
नीम रस से करो नया साल का स्वागत अभिन्दन ।
प्रवीण कहे कि निराशा से नाता छोड़ो ,
मगर आशा से कभी मुह मत मोड़ो।।
✍✍प्रवीण शर्मा
ताल
जिला रतलाम
टी एल एल एम् ग्रुप संचालक
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कविता