*”आशा”-दीप” जलेँ..!*
पावन पर्व, प्रकाश, पुरातन, उर से, वरण करें,
वँचित, शोषित, पीड़ित सँग भी दो पग आज चलें।
इक निर्धन की कुटिया का भी कुछ तो ध्यान धरें,
प्रेम, सदाशयता, करुणा, प्रतिपल, निर्बाध बढ़ें।
समता-मूलक हो समाज, कुछ ऐसे वचन कहें,
बढ़े विश्व-बन्धुत्व, कोई खाका इस भाँति रचें।
जीवन है अनमोल, सदा बस, उच्चादर्श रखें,
तुच्छ, व्यर्थ की बातों पर ना हरगिज़ कभी लड़ें।
कुन्ठा, कुत्सित भाव, कुतर्कों को न कदापि गढ़ें,
जो न कहे कुछ भी, उसके भी मन को कभी पढ़ें।
सुख, समृद्धि अरु प्रगति नित्य नूतन सोपान चढ़ें,
रहे देश पर एक, जुगत सब मिल इस भाँति कढ़ेँ।
ज्ञान, सत्य, मर्यादा, रूपी राम, विभ्रम हर लें,
मिटे तिमिर, नैराश्य, हृदय मेँ “आशा”-दीप” जलेँ..!