आशा की किस्ती
“आशा की किस्ती”
आशा की किस्ती को
हम ले चले हैं
भीहिम्मतकी पतवार से
वकत की विपरीत धारा में
नहीं पता हमें
पाऐगे मन्जिल
यह फिर
हो जाऐगे शिकार
लालच , वेईमानी, खुदगर्जी
के पत्थरों का
और डूव जाऐगे
अपनी ही आशा के
दरिया के भंबर मे।
डा. कुशल कटोच.