आशा का उजाला
“आशा का उजाला”
थोड़ी देर में लौट आऊँगी जरा चाची को दवाई दिलवा लाती हूँ उजाला ने साईकिल पर बैठते हुये मम्मी से कहा।
प्लेट मे खाना लगा है खाकर चली जाती।
आकर खा लूँगी।
ढककर रख दो।
मम्मी मन ही मन सोचते हुए इस लड़की की हर दिन की यही कहानी है कभी किसी की मदद तो कभी किसी मदद।
संभलकर जाना।
ठीक है मम्मी।आप चिन्ता मत करो।
राधा चाची मुझे पकड़कर बैठना।
ठीक है बेटी।
उजाला साईकिल की घंटी बजाते हुए गांव पार कर शहर के बाजार की भीड़ से गुजरते हुए चाची को आर्मी अस्पताल ले जाती है।(राधा चाची अकेली रहती है;पति और बेटा दोनों फौज में हैं)
अस्पताल गाँव से आठ किलोमीटर दूर है।कच्ची सड़क है।पहुँचने में घन्टा भर लगता है।थोड़ी आबादी वाले छोटे से गाँव से बस एक घोड़ा गाड़ी शहर तक आती जाती है।
मिल गई तो ठीक अन्यथा पैदल या साईकिल से।
साठ के दशक में यातायात सुविधा के इतने संसाधन ना थे।
शाम को घर लौटकर आती है खाना खाकर पढ़ाई में लग जाती है।
मम्मी-तुम्हारी बारहवी की परीक्षा को दस दिन बचे हैं।
कुछ दिन दूसरो की मदद छोड़ अपने सपने पर ध्यान दो।
पढ़कर तुम्हे आर्मी में बड़ा अफसर बनना है।
दिन भर दूसरों की मदद करते थक जाती होगी,समय बर्बाद अलग से होता है।
उजाला-किसी की मदद करने में जो खुशी मिलती है उसके आगे थकान क्या चीज़ है।इससे तो मुझे नई ऊर्जा मिलती है।सुकून मिलता है।
तभी टक टक की आवाज़ होती है,हर दिन की तरह एक गाय दरवाजे पर आकर सींग मारती है।
उजाला उठकर रसोई से थाल में रोटी सब्जी लेकर गाय को खिलाने चल देती है।गाय के पीछे एक काला कुत्ता खड़ा हुआ पूंछ हिला रहा है; एक रोटी उसे भी मिलती है।
जैसे ही वापिस आकर बैठती है।
देखती है कि मम्मी मुस्कुरा रही है।
क्या हुआ मम्मी क्यों मुस्कुरा रही हो?
तेरे पापा का खत आया है।
बॉर्डर पर सब ठीक है ना।
हाँ लिखा है कि कई दिनों से फायरिंग नही हुई।
मेरे लिए क्या लिखा है।
लिखा है कि अगले महीने आकर तुझे नई साईकिल दिलवा देंगे।
मम्मी आप खत में लिखकर भेज देना कि मुझे हाथ-घड़ी और रेडियो भी दिलवा देंगे ये डिब्बा पुराना हो गया है बिना हाथ मारे चलता ही नही।
बेटी इतना खर्च मत करवाया कर।
जो जरूरी है वही तो मांगती हूँ।
चल अब सो जा रात बहुत हो गई है।
सुबह जल्दी उठकर पढ़ लेना।
सुबह हो जाती है।
दरवाजे पर राधा चाची आवाज़ लगाती है।उजाला अरी ओ उजाला।
आई चाची।
उजाला किताब बन्द करके जाती है।
नमस्ते चाची।
क्या हुआ?
बेटी दवाई से आराम नही हुआ रात भर नींद नही आई, जी घबरा रहा है।
मुझे आर्मी अस्पताल ले चल।
तुम रुको मै अभी आई।
मम्मी मै जरा चाची को दवाई दिलाने जा रही हूँ उनकी तबियत ज्यादा खराब लग रही है।
उजाला चाची को साईकिल पर बैठा अस्पताल ले जाती है।
अस्पताल में दूसरी मंजिल पर जाने को जल्दी में सीढ़ियां चढ़ते हुए अचानक उजाला का पैर फिसल जाता है और वो लुढ़कते हुए नीचे आ गिरती है।
दर्द में कर्हाती हुई उजाला को ईलाज के लिये उठाकर ले जाया जाता है।
उजाला के हाथ और पर से खून बह रहा है सिर में भी चोट है।
डॉक्टर भागे आते हैं जांच के बाद पता चलता है कि उजाला के बायें हाथ की हड्डी तीन जगह से और दायें पैर की हड्डी दो जगह से टूट चुकी है।
हाथ पैर की हड्डी नही उमीद टूटी थी आर्मी मे नौकरी कर देश सेवा करने की।
सिर में भी अन्दरूनी चोट है पर इतनी गम्भीर नही है।
राधा चाची ख़ुद को कौस रही है!! कि क्यों उसे अपने साथ ले आई? घर जाकर इसकी माँ को क्या जवाब दूंगी? कैसे मूंह दिखाऊंगी?
हे भगवान! ये क्या हो गया।
ख़ैर खबर घर तक पहूंच जाती है।
माँ रोती हुई अस्पताल पहुंचती है।
उजाला के हाथ पैर पर प्लास्टर और सिर पर पट्टी बंधी देख दहाड़े मारकर रोने लगती है।
रोते हुए देख मदद का ये सिला मिला।
कोने में राधा चाची मूंह लटकाये खड़ी है।
डर शर्म के मारे पास आने की हिम्मत भी नही जुटा पा रही।
अस्पताल में तीन दिन भर्ती रहने के बाद उजाला घर आ जाती है।
घर पर उजाला को देखने वालों की भीड़ लगी है।
उजाला बहुत दुखी है।
अब वो सेना में नही जा पायेगी।
इस बात का दुख उसे चोट से ज्यादा पीड़ा दे रहा है।
पड़ोस के बुजुर्ग रामसेवक उसे समझाते हैं
बेटी हिम्मत मत हार।
जो हुआ उसमे कुछ अच्छा जरूर छिपा होगा!!
उजाला- बाबा जी, इसमे क्या अच्छा?सेना में भर्ती होने का मेरा सपना टूट गया।
रामसेवक-बेटी मजबूत बनो मां बाप तरस खा लेंगे पर ये ज़ालिम दुनिया किसी कमज़ोर पर रहम नही करती।
उजाला- इन शब्दों को सुन उजाला में नई ऊर्जा भर जाती है।
परीक्षा अच्छे अंकों से पास करती है।
पापा उसे नई साईकिल और रेडियो दिलवाते हैं।
उजाला-पापा मुझे शूटिंग सीखनी है।
पापा- ठीक है।
शहर जाकर शूटिंग रेंज में दाखिला करा देते हैं।
हर रोज़ साईकिल से शूटिंग सीखने शहर जाती है।
जिला स्तर की कई स्पर्धायें जीतती है।
स्टेट चैम्पियन बनती है।
पापा का 1971 के युद्ध में लड़ते वक्त गोला फटने से पैर कट जाता है।वो रिटायर होकर घर आ जाते हैं।
उजाला पर माँ पापा और घर की जिम्मेदारी आ जाती है।
पढ़ाई पूरी कर लेती है।
कुछ दिनों बाद स्कूल में सरकारी शिक्षिका बन जाती है।
शहर में स्थित स्कूल से आकर गाँव के बच्चों को निःशुल्क पढ़ाती है।आसपास के गाँवों में स्कूल ना था।
शादी नही करती।
उजाला फाऊंडेशन की स्थापना करती है।
इस फाऊंडेशन का उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों और जो पढ़ना चाहे उन्हे शिक्षा देना था।
कोई सरकारी मदद नही लेती।
कई बच्चे पढ़कर सेना में भर्ती हो चुके हैं
कई अलग-अलग विभागों में अच्छी नौकरी कर रहें हैं।
माँ पापा दोनों अब नही रहे।
उजाला फाऊंडेशन ने कितनों के ही जीवन में उजाला लाया है
गाँवो में पेड़ लगवायें हैं, गरीबों के घर बनवाएं हैं आदि आदि
उजाला ने कितने ही लोगों को सशक्त होकर जीने की आशा दी है।
उजाला 80 पार की उम्र में भी ज्ञान बांट रही है।
सराहनीय कार्य के लिये राष्ट्रपति से पुरुस्कार पाती है।
एक न्यूज़ चैनल की ऐंकर इंटरव्यू लेने गाँव आती है।
न्यूज़ ऐंकर-नमस्ते उजाला जी।
उजाला- नमस्ते।
न्यूज़ ऐंकर-आपको उजाला फाऊंडेशन चलाने की प्रेरणा कैसे मिली।
उजाला- किसी की सहायता करने की खुशी ही मेरे लिये प्रेरणा है।
न्यूज़ ऐंकर-आप इस उम्र में भी पढ़ाती है।देखकर अच्छा लगता है।आप कब तक पढ़ाती रहेंगी?
उजाला- जब तक स्वास्थ्य साथ देगा तब तक पढ़ाती रहूंगी।
न्यूज़ ऐंकर-आप कोई सरकारी मदद नही लेती।
उजाला-मेरी पेंशन इसके लिए पर्याप्त है।मेरे पढ़ाये बच्चे भी सहयोग करते हैं।
न्यूज़ ऐंकर-आपका सपना क्या है?
उजाला-हर बच्चा अपने सपने को पूरा करे,सफल आदमी बने।
न्यूज़ ऐंकर-हाँ तभी तो आसपास के गाँव के बच्चे बड़े बड़े पदों पर अपनी सेवायें दे रहें हैं।
उजाला- खुशी होती है।
न्यूज़ ऐंकर-आपका जीवन परिचय पढ़कर ज्ञात होता है कि आपने इतने संघर्षों को पार किया और कभी हार नही मानी आप सच में असल जीवन की नायिका हैं।
उजाला- धन्यवाद,ऐसा आप समझती हैं मै तो एक साधारण सी औरत हूँ।
न्यूज़ ऐंकर-श्रेय ना लेने की यही बात तो आपको एक सच्ची नायिका बनाती है।आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा सादर नमस्ते।
उजाला- बहुत बहुत धन्यवाद।।।।
सादर प्रणाम
सौरभ चौधरी।।