आवृत्तिका छंद
● विधा -आवृत्तिका छंद
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★ आवृत्तिका छंद!
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(आवृत्तिका छंद में चार चरण होते है 16/8 पर यति दूसरे व चौथे चरण मे तुकांत , अंत मे दो शुद्ध गुरू अनिवार्य।
[ मात्रिक,१६/८,अंत दो शुद्ध गुरू/ दीर्घ]
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भूख से फैली हथेली है , कौन सुनेगा।
मुट्ठी भर अनाज से थैली , कौन भरेगा।
कुछ जलता हुआ सा छुआ है, कौन सहेगा।
दर्द में कई रातें गुजरी , कौन बचेगा।
परेशानी के तह क्यों किये, तर्क नहीं है।
भीड़ में या एकांत क्षण में, फर्क नहीं है।
शब्दों वाला तीर चला जो , कौन सुनेगा।
सुनने का जो यत्न किया तो, देख चुभेगा।
कराहों की लहरों से जिगर , टूट बहेगा।
गले-पिघले नयन धारा से , कौन बचेगा।
-रंजना वर्मा