आवाज़ का आगाज़
घोष,ध्वनि,नाद,बन धड़कन,
गूँजती साँसों में मधुर तेरी याद ।
रौरव,शब्द ,आवाज़,
सुन कण-कण मुखर हर साज़।
आहट,कोलाहल,कलरव,रव, और वाद
तेरी चाहत गूंजती बन उल्लसित उर उन्माद।
धूम,ग़ुल,उच्चारण कृष्ण बांसुरी सम तान,
बतिया रही तेरी गुफ्तगू कर रहे सद् संवाद प्राण।
खुश रंग,राग,लहजा तेरा,क्यों मन झंझावात विवाद
आ गुँजादें मौशिकी प्रेम की हृदय कर रहा फरियाद।
स्वर ,रंगत,डोरी,तान सुन दे रही जीव मियाद
तैयार हैं सब आजकल फूंकने को युद्ध नाद।
नीलम तू क्यों चाहती, परस्पर शांति संवाद
कीचड़ में छींटें न पड़े, यह सोच बेबुनियाद।
नीलम शर्मा