आल्ह छंद
#विधा – गीत
#छंद- आल्ह
उत्सव
उत्सव तो हैं प्राण हमारे, उत्सव जीवन का आधार।
बिन उत्सव तो सब जग सूना, व्यर्थ लगे सारा संसार।
होली का हुड़दंग इसीसे, वैशाखी का ये उल्लास।
दीवाली का पूजन इससे, देता उत्सव हमें प्रकाश।
कर्क चतुर्थी गो धन पूजा, अपना तन-मन इसपर वार।
बिन उत्सव तो सब जग सूना, व्यर्थ लगे सारा संसार।
धर्म कर्म की राह दिखायें, दान पुण्य की चलती रीत।
मेल जोल उत्सव में होता, जुड़ी रहे आपस में प्रीत।
बच्चों की खुशियाँ भी इनसे, रिश्तों का इनसे व्यवहार।
बिन उत्सव तो सब जग सूना, व्यर्थ लगे सारा संसार।
होली का उत्सव जब आये, रंगों की चलती बौछार।
भेद भाव को सभी भुलाकर, रंग. लगाते मिल नर नार।
व्यंजन बनते भाँति भाँति के, हर उत्सव के ही अनुसार।
बिन उत्सव तो सब जग सूना, व्यर्थ लगे सारा संसार।
-स्वरचित व मौलिक
गोदाम्बरी नेगी (हरीद्वार)