आल्हा छन्द
भारत माता की सेवा में,उद्यत हैं वे त्यागी वीर।
सीमा पर तैनात खड़े हैं,यथा अडिग कोई प्राचीर।१।
गर्मी-वर्षा-शीत किसी की,किए बिना किंचित परवाह।
लक्ष-लक्ष बस एकलक्ष्य हो,करते हैं कर्तव्य-निबाह।२।
क्षात्र नहीं वीरों में केवल, वीराएँ भी वीर – प्रशस्त।
बंदूकें ,तोपें, व लड़ाके, सभी में अब वे सिद्धहस्त!३!
कोटिक बहनों की राखी का,कल तक भाई रखता लाज।
उन राखी का हाथ बटाने, स्वयं आ गई बहनें आज।४।
भारत माता कहती पुलकित ,”शतायु भव मम पुत्री-पुत्र।
नानाविध मणि,मुक्ताओं के,हार कहाँ मिलते अन्यत्र”!५!
जिसने प्रण पर प्राण लुटाए,रहे मरण उपरांत अजेय।
उनके महा-त्याग की गाथा,रही सदैव ही अनुपमेय।६।
-सत्यम प्रकाश ‘ऋतुपर्ण’