आल्हा छंद – शक्ति विस्मरण
वानर सेना बैठी जाकर, सोच रही जा सागर तीर।
माँ सीता की सुध लेने को,उठी सभी के मन में पीर।।
राह रोक ली है सागर ने,पहुंचें कैसे इसके पार।
चेहरे सबके लटक दीखें , सब ही दिखते हैं लाचार।।
तभी अचानक काकभुशुण्डी,बोले सुन लो ध्यान लगाय।
केवल महावीर हनुमान दिखा, सकते हैं ये करतब दिखलाय।।
इनकी सोती शक्ति जगा लो,इनसा कोई नहिं बलवान।
वानर सेना के गौरव की, यही बढा़ सकते हैं शान।।
भूल गये ये अपने बल को,ऋषि ने दे दीना था शाप।
बचपन में आश्रम में जा जब,उधम मचाते दीखे आप।।
सदा विस्मरित शक्ति रहेगी, याद दिलाने पर ही आय।
राम काज के कारण सब मिल,सोयी शक्ती रहे जगाय।।
महावीर सुन खड़े हो गये,दी हुँकार छलांग लगाय।
जलनिधि मध्य गगन में उडते,तुरत लंकिनी पकड़ा आय।
हाथ जोड़ा बोले हे! माता, पहले कर लूं मैं प्रभु काज
कहे लंकिनी हूँ भूखी मैं, भोजन छोड़ न पाऊं आज।।
कौशल कुमार पाण्डेय “आस”