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16 Jul 2021 · 2 min read

आलेख- ग़ज़ल लिखना सीखें (भाग-4) तख़्ती करना

आलेख- ग़ज़ल लिखना सीखे -भाग–4
मात्रा गिनना सीखें-
ग़ज़लकार-श्री सुखविंद्र सिंह मनसीरत जी खेड़ी राओ वाली (कैथल)की एक ग़ज़ल की मात्रा गिनना (तख़्ती) सीखेंगे-
(1-)पूरी ग़ज़ल-
ग़ज़ल का भार (वज़न) -222 222 221 2=19

तन भीगा भीगा मन सूखा रहा।
सावन में भी साजन रूठा रहा।।

जहरी बन कर विष को पीता रहा।
कड़वे विष का भी रस मीठा रहा।।

मय को पीकर मैं मयकश भी बना।
महफ़िल में दिलजानी रूखा रहा।।

बारिश बूंदें गीला कर ना सकी।
बरसाती मौसम में प्यासा रहा।।

मनसीरत मन ही मन चाहे तुझे।
नफरत में दीपक बन जलता रहा।।
**************************
ग़ज़लकार- सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

ग़ज़ल का भार (वज़न) -222 222 221 2=19
रदीफ- “रहा”
क़ाफिया- आ का ,= रूठा,सूखा,पीता, मीठा,जलता,प्यासा

तन भीगा भीगा मन सूखा। रहा।
2 22 22 2 22 1 2

सावन में भी साजन रूठा रहा।।
2 2 2 2 2 2 22 1 2

जहरी बन कर विष को पीता रहा,
2 2 2 2 2 2 22 1 2

कड़वे विष का भी रस मीठा रहा।
2 2 2 2 2 2 22 1 2

मय को पीकर मैं मयकश भी बना,
2 2 2 2 2 2 2 2 1 2
महफ़िल में दिलजानी रूखा रहा।
2 2 2 2 22 22 1 2
बारिश बूंदें गीला कर ना सकी,
2 2 2 2 22 2 2 1 2
बरसाती मौसम में प्यासा रहा।
2 2 2 2 2 2 22 1 2

मनसीरत मन ही मन चाहे तुझे,
2 2 2 2 2 2 22 1 2
नफरत में दीपक बन जलता रहा।
2 2 2 2 2 2 2 2 1 2
**************************
-सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)
##################
उदाहरण-*(2)*
ग़ज़ल- राना लिधौरी

रदीफ- हो

काफिया- आते,जाते,महकाते, तड़पाते,शरमाते,जाते,

भार- 212 211 222=17
तुम मुझे याद बहुत आते हो।
2 12 2 1 12 2 2 2 =17

आंख से दिल में समा जाते हो।।
2 1 2 2 1 12 2 2 2 =17

हो तुम्हीं मेरी मुहब्बत का फ़ूल।
ज़िन्दगी को तुम्हीं महकाते हो।।

तुम तसब्बुर में मिरे आ आकर।
किसलिए तुम मुझे तड़पाते हो।।

प्यार करते हो मुझे तुम भी मगर।
मुंह से कुछ कहने में शरमाते हो।।

‘राना’ हम तुम को भुलाएं कैसे।
दिल के मंदिर में बसे जाते हो।।
***
गजलगो- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’, टीकमगढ़ (मप्र)
**********
*उदाहरण-(3) **क्यों दूर हो (गजल) **
वज़न-*** 2122 2212 ***
रदीफ– हो
क़ाफिया- दूर,हूर,नूरभरपूर,मजबूर, चूर,भूर
********************

पास आओ क्यों दूर हो,
आप ही दिल की हूर हो।

प्यार में पागल हो चुके,
हिय जिगर का तुम नूर हो।

देख कर हो बीसों गुना,
हौसले से भरपूर हो।

ताक से रहना घूरना,
आदतों से मजबूर हो।

जीत ली हमने हर खुशी
स्नेह में चकना चूर हो।

यार मनसीरत ने कहा,
हो चमकती सी भूर हो।
********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)
*****
आलेख-– राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’*
संपादक- ‘आकांक्षा’पत्रिका
अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
शिवनगर कालोनी, टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल-9893520965

Language: Hindi
Tag: लेख
235 Views
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