आलू परांठा
।। आलू परांठा ।।
एक पलक झपकने तक में ।
झट से बंट जाता बचपन में ।
टिफ़िन में बंधा छिपा परांठा ।
आलू भरा चटपटा परांठा ।
पता नहीं था सूंघते कैसे ?
श्वान नासिका लगी थी जैसे।
धम से आकर ध्यान बंटाना ।
कभी चिढ़ाना कभी सताना ।
इस अनसुलझी उलझन में
झट से बंट जाता बचपन में ।
टिफ़िन में बंधा छिपा परांठा ।
आलू भरा चटपटा परांठा ।
रंग बिरंगे हाथों की सवारी ।
खींचा-तानी बारी-बारी ।
कौर-कौर छिजता था ऐसे ।
कोल्हू में पिसती राई के जैसे।
और तभी दूजे ही क्षण में ।
झट से बंट जाता बचपन में ।
टिफ़िन में बंधा छिपा परांठा ।
आलू भरा चटपटा परांठा ।
अब खाने में भारी सा लगता।
फीका-फीका चखन में लगता।
हाथ में आकर ज्यों सहकता ।
धीरे-धीरे कान में कहता।
खत्म न होता एक परांठा ।
खुले टिफिन में धरा परांठा ।
आलू भरा नमकीन परांठा ।
।।मुक्ता शर्मा त्रिपाठी ।।