आलिंगन
आलिंगन
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विवृत व्योम के प्रांगण मे,
शिला पर बैठल, तरबोरा निहारैत,
पुछि रहल छी अकास से।
हमरा की चाही…
हमरा की चाही…
उत्तर भेटल_
हुनक नयन… हुनक नयन…
सन सन बहैत पवन देह के चीरैत,
धपड़ धपड़ करैत,
मनकेऽ उछीन कएने जा रहल अछि,
खुलल अकास में सुरूज से,आंखि मिला पुछलहुॅं।
हम की ताकि रहल छी..
हम की खोजि रहल छी…
उत्तर भेटल_
हुनक वदन… हुनक वदन…
हमरा लगैत अछि,हमर दुखक कोनो अंत नहिं,
हम अकास में गरजैत बादरि से पुछलहुॅं।
हमरा में कोन कमी अछि…
हमरा में कोन कमी अछि…
उत्तर भेटल_
मनक एकाकीपन… मनक एकाकीपन…
अन्हार नभ मेह सऽ घिर आयल,
मंद मंद बहैत मरूत्, सेहो द्रुत भऽ गेल अछि,
बरसैत तड़ित जलद घनघोर से पुछलहुॅं।
हमर कि उद्देश्य…
हमर कि उद्देश्य…
उत्तर भेटल_
हुनक आलिंगन… हुनक आलिंगन…
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १९ /०२/ २०२२
फाल्गुन , कृष्णपक्ष , तृतीया ,शनिवार
विक्रम संवत २०७८
मोबाइल न. – 8757227201