आलिंगन
छायी देखो बसंत की मस्ती
चली मदिर वासंती बयार।
विटप संग लिपटी है वल्लरि
आलिंगन संग निखरा प्यार।
इन्हें बांहों का झूला कह दें
या नाम दें स्नेह अकिंचन।
जब मैया ललना को झुलाये
लेकर निज हृदयालिंगन।
प्रियतम को पाकर सम्मुख
जब गोरी के झुक जाएं नयन।
बरबस ही आकुल हो सजना
लेते प्रिया संग प्रेमालिंगन।
समय सदा न एक सा रहता
है ऊँचा-नीचा इसका चलन।
टेढ़ी चाल तो थपेड़े वक्त के
सीधी चाल उसका आलिंगन।
जन्म ईश आशीष आलिंगन
प्यारा बचपन माँ का आलिंगन।
सुखमय जीवन भाग्य आलिंगन
पटाक्षेप है मृत्यु का आलिंगन।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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