आलिंगन हो जानें दो।
अपने अधर के कपलों में मुझे खो जानें दो।
अपने प्रेम की बरखा में मुझे भीग जानें दो।।
मैं बहुत तड़पा हूं प्रीतम तुम्हारी स्मृतियों में।
आज मेरा तुम खुद में आलिंगन हो जानें दो।।
बहते लहू को और सांसों से गर्म हो जानें दो।
काम की अग्नि में मुझको तुम जल जानें दो।।
मझधार में ये नैय्या है किनारा मिल जानें दो।
तुम्हारे प्रेम में डूब कर मुझे अब मर जानें दो।।
सावन बीता भादों बीता प्रीतम तुम ना आए
ओ मेरे भागीरथी तुम मुझे ही पीछे आने दो।।
विरह की अग्नि में जल जल मैं निरह हुई हूं।
मुझको अपनी बहती गंगा अब बन जानें दो।।
हर पहर बस आँखें तकती तेरे आने की राह।
अब ना कहना फिरसे एक बार भी जानें को।।
नीरस जीवन मेरा जैसे मृग तृष्णा की प्यास।
इस बार खुदमें मुझको समर्पित हो जानें दो।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ