आरज़ू है बस ख़ुदा
है फ़कत इक आरज़ू
बस तेरी ही जुस्तजू
और कुछ भाए नहीं
याद कुछ आये नहीं
राह से अनजान हम
हैं निरे नादान हम
रुख जिधर को भी करें
पाँव आगे ही धरें
हौसले टूटें नहीं
मंजिलें रूठें नही
हाथ में बस हाथ हो
और तेरा साथ हो
हर समुन्दर पार कर
पर्वतों को लाँघ कर
चूम लेंगे आ तुझे
झूम लेंगे गा तुझे
बस तमन्ना माँ तेरी
थाम ले उँगली मेरी
पूर्ण मेरी आस हो
ज़िंदगी कुछ खास हो
हाथ हो सर पर सदा
आरज़ू है बस ख़ुदा
© डॉ० प्रतिभा माही