आरजू
काफ़िया- आनी
रदीफ़-सनम दे दो
बह्र-1222 1222 1222 1222
“आरजू”
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अकेले रो लिए तुम आज वीरानी सनम दे दो।
तरसती आरजू को आज हैरानी सनम दे दो।
बहुत तड़पे सहे कितने ज़माने के सितम तुमने
लगादूँ शूल का पहरा निगहबानी सनम दे दो।
बड़ी बेदर्द दुनिया है सभी रिश्ते बिकाऊ हैं
लगालूँ दर्द सीने से परेशानी सनम दे दो।
ठिकाना था जो’ दिल ‘रजनी’ हुआ वो आज गैरों का
अगर शय मानते उसकी पशेमानी सनम दे दो।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
महमूरगंज, वाराणसी।
संपादिका-साहित्य धरोहर