आरक्षण: एक समीक्षात्मक लेख
मैं सोच रहा एक लेख लिखूं, मैं भी लेखक बन जाऊं क्या,
आरक्षण की लौ पर जलते, चिताओं की गाथा गाउं क्या!!
जब था आरक्षण दिया गया, तब की स्थिति बतलाऊं क्या,
आज आर्थिक की जरूरत क्यों, यह बात तुम्हें समझाऊं क्या!!
अयोग्य को तुमने दिया हैं शासन, दुर्भाग्य तख्त बतलाऊं क्या,
जो योग्य हो कर भी रह गए पीछे, उनकी मैं व्यथा सुनाऊं क्या!!
आरक्षण की आग जो लगी हुई है, उसमें आहुति बन जाऊं क्या,
जो विकास मार्ग अवरोध किया है, जीडीपी जैसा गिर जाऊं क्या!!
कभी 50, कभी 58, कभी 82, आरक्षण का नाच नचाऊं क्या,
जा–जाकर न्यायलय जो घिस गए चप्पल, उस पर वो कील दिखाऊं क्या!!
तुम कहते हो तुम युवा हो तुम कर्म करो, अरे जड़ तुमको समझाऊं क्या,
जो समय चक्र है निकल रहा , ख़ुद समय चक्र बन जाऊं क्या!!
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”