आरक्षण एक विघ्न
विघ्न मेधावी का ……
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आरक्षण है विघ्न बड़ा
मेधा के पथ दुर्भाग्य खड़ा,
अब काहे नहीं तुम जाग रहे
अपने हक को नहीं मांग रहे
रण करने को रणभूमी मिला
फिर काहे हो तुम भाग रहे
अब आरक्षण झंझोड़ रहा
यह मेधावी को तोड़ रहा
फिर काहे नहीं रण करते हो
तुम याचक बन क्यों मरते हो
है विघ्न कौन सा इस जग में
जो रोक सके क्षमता क्षण में
प्रलय प्रचण्ड आ जाता है
जब मेधा मुखर हो जाती है
भावी भविष्य वह स्वप्न हो तुम
माँ -बापू का अमरत्व हो तुम
फिर ऐसे क्यों तुम सोते हो
अधिकार तुम अपना खोते हो
है कायरता यह कुछ और नहीं
अब आत्मसमर्पण और नहीं
विद्या-बुद्धि-क्षमता अखण्ड
मेधावी के साधन प्रचण्ड
विपदा को अपने श्रवण करो
बुद्धि-बिबेक को प्रखर करो
कब तक यूंही शर्माओगे
दूर्भाग्य को गले लगाओगे
आओ दुर्भाग्य का नाश करें
आरक्षण मुक्त इतिहास लिखें।।
©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
दिल्ली